बुधवार, 19 मार्च 2014

ग़ज़ल 58 [03] : इक धुँआ सा उठा दिया तुम ने....

ग़ज़ल 58[03]

बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़्बून मुज़ाहिफ़ 
फ़ाइलातुन---मफ़ाइलुन---फ़अ’ लुन
2122----1212-----22-/112
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इक धुँआ सा उठा दिया तुम ने
झूठ को सच बता दिया तुम ने

लकड़िय़ाँ अब भी गीली गीली हैं 
वाह ! शोला बना दिया तुम ने 

तुम भी शीशे के घर में रहते हो
फिर भी पत्थर चला दिया तुम ने

आइनों से तुम्हारी यारी थी
उनको पत्थर दिखा दिया तुम ने

खिड़कियाँ अब नहीं खुला करती
जब मुखौटा हटा दिया तुम ने

रहबरी की उमीद थी तुम से
पर भरोसा मिटा दिया तुम ने

तुम पे कैसे यकीं करे ’आनन’
रंग अपना दिखा दिया तुम   ने

-आनन्द.पाठक

[सं 30-06-19]

शनिवार, 15 मार्च 2014

गीत 53 : छेड़ गईं फागुनी हवाएँ........

आ0 मित्रो !

आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनायें........

होली गीत 

छेड़ गईं फागुनी हवाएँ
रंग चलो प्यार का लगाएँ

आई है कान्हा की टोली
राधा संग खेलन को होरी
" मोड़ ना कलाई  कन्हैया
काहे को करता बरजोरी "
ध्यान रहे होली में इतना मर्यादाएँ न टूट जाएँ
रंग चलो प्यार का लगाएँ...............

देख रही दुनिया है सारी
कुछ तो शर्म कर अरे मुरारी
लाख पड़े चाहे तू पईंयाँ
मैं न बनूँ रे कभी तुम्हारी
लोग कभी नाम मेरा लेंगे ,नाम तेरा साथ में लगाएँ
रंग चलो प्यार का लगाएँ............

मन की जो गाँठे ना खोली
काहे की, कैसी फिर होली
दिल से जो दिल ना मिल पाया
फीकी है स्वागत की बोली
रूठ गया अपना जो कोई ,आज चलो मिल के सब मनायें
रंग चलो प्यार का लगाएँ.........

आया है होली का  मौसम
तुम भी जो आ जाते,प्रियतम !
भर लेती खुशियों से आँचल
सपनों को मिल जात हमदम
रंग प्रीत का प्रिये लगा दो, उम्र भर जिसे छुड़ा न पाएँ
रंग चलो प्यार का लगाएँ.........................

-आनन्द.पाठक