ग़ज़ल 58[03]
बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़्बून मुज़ाहिफ़
फ़ाइलातुन---मफ़ाइलुन---फ़अ’ लुन
2122----1212-----22-/112
-----------------------
इक धुँआ सा उठा दिया तुम ने
झूठ को सच बता दिया तुम ने
लकड़िय़ाँ अब भी गीली गीली हैं
वाह ! शोला बना दिया तुम ने
तुम भी शीशे के घर में रहते हो
फिर भी पत्थर चला दिया तुम ने
आइनों से तुम्हारी यारी थी
उनको पत्थर दिखा दिया तुम ने
खिड़कियाँ अब नहीं खुला करती
जब मुखौटा हटा दिया तुम ने
रहबरी की उमीद थी तुम से
पर भरोसा मिटा दिया तुम ने
तुम पे कैसे यकीं करे ’आनन’
रंग अपना दिखा दिया तुम ने
-आनन्द.पाठक
[सं 30-06-19]
फ़ाइलातुन---मफ़ाइलुन---फ़अ’ लुन
2122----1212-----22-/112
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इक धुँआ सा उठा दिया तुम ने
झूठ को सच बता दिया तुम ने
लकड़िय़ाँ अब भी गीली गीली हैं
वाह ! शोला बना दिया तुम ने
तुम भी शीशे के घर में रहते हो
फिर भी पत्थर चला दिया तुम ने
आइनों से तुम्हारी यारी थी
उनको पत्थर दिखा दिया तुम ने
खिड़कियाँ अब नहीं खुला करती
जब मुखौटा हटा दिया तुम ने
रहबरी की उमीद थी तुम से
पर भरोसा मिटा दिया तुम ने
तुम पे कैसे यकीं करे ’आनन’
रंग अपना दिखा दिया तुम ने
-आनन्द.पाठक
[सं 30-06-19]