एक ग़ज़ल ----
2122---2122---212
हुस्न उनका जलवागर थ ,नूर था
"मैं" कहाँ था ? बस वही थे,’तूर’ था
"मैं" कहाँ था ? बस वही थे,’तूर’ था
होश में आया न आया ,क्या पता
बाद उसके उम्र भर मख़्मूर था
रोशनी का एक पर्दा सामने
पास आकर भी मैं कितना दूर था
पास आकर भी मैं कितना दूर था
एक लम्हे की सज़ा इक उम्र थी
वो तुम्हारा कौन सा दस्तूर था
वो तुम्हारा कौन सा दस्तूर था
अहल-ए-दुनिया का तमाशा देखना
क्या यही मेरे लिए मंज़ूर था ?
क्या यही मेरे लिए मंज़ूर था ?
ख़ाक में मिलना था जब वक़्त-ए-अजल
किस लिए इन्सां यहाँ मग़रूर था ?
किस लिए इन्सां यहाँ मग़रूर था ?
राह-ए-उलफ़त में हज़ारों मिट गए
सिर्फ़ ’आनन’ ही नहीं मजबूर था
सिर्फ़ ’आनन’ ही नहीं मजबूर था
-आनन्द.पाठक-
[सं 30-06-19]
[सं 30-06-19]