शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

ग़ज़ल 96[41] : मिलेगा जब वो हम से

1222--1222--1222--1222 
ग़ज़ल : मिलेगा जब भी वो हमसे---

मिलेगा जब भी वो हम से, बस अपनी ही सुनायेगा
मसाइल जो हमारे हैं  , हवा  में  वो   उड़ाएगा

अभी तो उड़ रहा है आस्माँ में ,उड़ने  दे उस को
कटेगी डॊर उस की तो ,कहाँ पर और जायेगा ?

सफ़र में हो गया तनहा ,तुम्हारे  साथ चल कर जो
वो यादों के चरागों को  जलायेगा  ,बुझायेगा

कहाँ तक खींच कर लाई ,तुझे यह ज़िन्दगी प्यारे
अगर तू लौटना चाहे , नहीं  तू  लौट पायेगा

इस आँगन का शजर है बस इसी उम्मीद में ज़िन्दा
परिन्दा जो गया है छोड़ , वापस लौट आयेगा

वो रिश्तों की लगाता बोलियाँ बाज़ार में जा कर
जिसे करनी तिजारत है वो रिश्ते क्या निभायेगा

अरे ! क्या सोचता रहता यहाँ पर बैठ कर ’आनन’
गये हैं लोग सब कुछ छोड़ ,तू  भी  छोड़ जायेगा 

-आनन्द.पाठक-

शुक्रवार, 6 अक्तूबर 2017

ग़ज़ल 95[44] : छुपाते ही रहे अकसर---

1222--1222---1222---1222
एक ग़ज़ल : छुपाते ही रहे अकसर--

छुपाते ही रहे अकसर ,जुदाई के ये चश्म-ए-नम
जमाना पूछता गर ’क्या हुआ?’ तो क्या बताते हम

मज़ा ऐसे सफ़र का क्या,उठे बस मिल गई मंज़िल
न पाँवों में पड़े छाले  ,न आँखों  में  ही अश्क-ए-ग़म

न समझे हो न समझोगे ,  ख़ुदा की  यह इनायत है
बड़ी क़िस्मत से मिलता है ,मुहब्बत में कोई हमदम

हज़ारों सूरतें मुमकिन , हज़ारों  रंग भी मुमकिन
मगर जो अक्स दिल पर है किसी से भी नहीं है कम

ख़िजाँ का है अगर मौसम ,दिल-ए-नादाँ परेशां क्यूँ
सभी मौसम बदलता है  ,बदल जायेगा ये मौसम

नहीं देखा सुना होगा  ,जुनून-ए-इश्क़ क्या होता
कभी ’आनन’ से मिल लेना ,समझ जाओगे तुम जानम

-आनन्द.पाठक-

मंगलवार, 3 अक्तूबर 2017

ग़ज़ल 94 [40]: बहुत अब हो चुकी बातें---


1222--1222--1222---122
ग़ज़ल : बहुत अब हो चुकी बातें------

बहुत अब हो चुकी बातें तुम्हारी ,आस्माँ की
उतर आओ ज़मीं पर बात करनी है ज़हाँ की

मसाइल और भी है ,पर तुम्हें फ़ुरसत कहाँ है
कहाँ तक हम सुनाएँ  दास्ताँ  अश्क-ए-रवाँ की

मिलाते हाथ हो लेकिन नज़र होती कहीं पर
कि हर रिश्ते में रहते सोचते  सूद-ओ-जियाँ की

सभी है मुब्तिला हिर्स-ओ-हसद में, खुद गरज हैं
यहाँ पर कौन सुनता है  अमीर-ए-कारवां  की

वही शोले हैं नफ़रत के ,वही फ़ित्नागरी  है
किसे अब फ़िक़्र है अपने वतन हिन्दोस्तां की

हमें मालूम है पानी कहाँ पर मर रहा  है
बचाना है हमें बुनियाद  पहले इस मकाँ  की

तुम्हारे दौर का ’आनन’ कहो कैसा चलन है?
वही मारा गया जो  बात करता है ईमाँ  की

-आनन्द.पाठक--

शब्दार्थ
मसाइल =समस्यायें
अश्क-ए-रवाँ = बहते हुए आँसू
सूद-ओ-ज़ियाँ = हानि-लाभ/फ़ायदा-नुक़सान
मुब्तिला =लिप्त
हिर्स-ओ-हसद= लोभ लालच इर्ष्या द्वेष
पित्नागरी = दंगा फ़साद