[आज 29 दिसम्बर 20012 ,वर्ष का अवसान. अवसान एक अनामिका का,एक दामिनी का एक निर्भया का....उसे नाम की ज़रूरत नहीं ..दरिंदों के वहशीपन की शिकार.....मुक्त हो गई ..ये शरीर छोड़ कर...चली गई ये दुनिया छोड़ कर.....और छोड़ गई पीछे कई सवाल ’...जवाब तलाशने कि लिए.....। उसी सन्दर्भ में एक श्रद्धांजलि गीत प्रस्तुत कर रहा हूं...]
श्रद्धांजलि : हे अनामिके !
आज अगर ख़ामोश रहे तो ....
नए वर्ष के नई सुबह का कौन नया इतिहास लिखेगा ?
श्वान-भेड़िए , सिंहद्वार पर आकर फिर ललकार रहे हैं
साँप-सपोले चलती ’बस’ में रह रह कर फुँफकार रहे हैं
हर युग में दुर्योधन पैदा ,हर युग में दु:शासन ज़िंदा
द्रुपद सुता का चीर हरण ये करते बारम्बार रहे हैं
आज अगर ख़ामोश रहे तो ......
गली गली में दु:शासन का फिर कैसे संत्रास मिटेगा ?
जनता उतर चुकी सड़कों पर अब अपना प्रासाद संभालो !
चाहे आंसू गोले छोड़ो ,पानी की बौछार चला लो
कोटि कोटि कंठों से निकली नहीं दबेंगी ये आवाज़ें
चाहे लाठी चार्ज़ करा दो ’रैपिड एक्शन फ़ोर्स’ बुला लो
आज अगर ख़ामोश रहे तो ....
सत्ता की निर्ममता का फिर कौन भला विश्वास करेगा ?
हे अनामिके ! व्यर्थ तेरा वलिदान नहीं हम जाने देंगे
जली हुई कंदील नहीं अब बुझने या कि बुझाने देंगे
इस पीढ़ी पर कर्ज़ तुम्हारा शायद नहीं चुका पायेंगे
लेकिन फूल तुम्हारे शव का कभी नहीं मुरझाने देंगे
आज अगर ख़ामोश रहे तो .....
आने वाले कल का बोलो कौन नया आकाश रचेगा ?
कौन नया इतिहास लिखेगा ?
-आनन्द.पाठक-
रविवार, 30 दिसंबर 2012
गीत 42 :आज अगर ख़ामोश रहे तो--[अनामिके !]
Labels:
गीत
न आलिम न मुल्ला न उस्ताद ’आनन’ //
अदब से मुहब्बत अदब आशना हूँ//
सम्पर्क 8800927181
बुधवार, 12 दिसंबर 2012
एक ग़ज़ल 37[25] : वो आम आदमी है..
एक ग़ज़ल : वो आम आदमी है....
मुज़ारे’ मुसम्मन अख़रबमफ़ऊलु--फ़ाइलातुन--// मफ़ऊलु--फ़ाइलातुन
221--2122 // 221-2122
------------
वो आम आदमी है , ज़ेर-ए-नज़र नहीं है
उसको भी सब पता है ,वो बेख़बर नहीं है
सपने दिखाने वाले ,वादे हज़ार कर ले
कैसे यकीन कर लूं , तू मोतबर नहीं है
तू मीर-ए-कारवां है ,ग़ैरों से क्यों मिला है ?
अब तेरी रहनुमाई , उम्मीदबर नहीं है
की सरफ़रोशी तूने जिस रोशनी की ख़ातिर
गो सुब्ह हुई तो लेकिन ये वो सहर नहीं है
तेरी रगों में अब भी वो ही इन्कलाबी ख़ूं हैं
फिर क्या हुआ कि उसमें अब वो शरर नहीं है
यां धूप चढ़ गई है तू ख़्वाबीदा है अब भी
दुनिया किधर चली है तुझको ख़बर नहीं है
मर कर रहा हूँ ज़िन्दा हर रोज़ मुफ़लिसी में
ये मोजिज़ा है शायद ,मेरा हुनर नहीं है
पलकें बिछा दिया हूं वादे पे तेरे आकर
मैं जानता हूँ तेरी ये रहगुज़र नहीं है
किसकी उमीद में तू बैठा हुआ है ’आनन’
इस सच के रास्ते का यां हम सफ़र नहीं है
-आनन्द.पाठक-
09413395592
ज़ेर-ए-नज़र = सामने ,
मोतबर =विश्वसनीय,
मीर-ए-कारवां = यात्रा का नायक
शरर = चिंगारी
ख्वाविंदा = सुसुप्त ,सोया हुआ
मुफ़लिसी = गरीबी ,अभाव,तंगी
मोजिज़ा =दैविक चमत्कार
यां =यहाँ
न आलिम न मुल्ला न उस्ताद ’आनन’ //
अदब से मुहब्बत अदब आशना हूँ//
सम्पर्क 8800927181
बुधवार, 5 दिसंबर 2012
एक ग़ज़ल 36 : इज़हार-ए-मुहब्बत....
एक ग़ज़ल : इज़हार-ए-मुहब्बत...
इज़हार-ए-मुहब्बत के हैं मुख़्तार और भी
इस दर्द-ए-मुख़्तसर के हैं गुफ़्तार और भी
ये दर्द मेरे यार ने सौगात में दिया
करता हूं इस में यार का दीदार और भी
कुछ तो मिलेगी ठण्ड यूँ दिल में रक़ीब को
होने दे यूँ ही अश्क़-ए-गुहरबार और भी
आयत रहीम-ओ-राम की वाज़िब तो है,मगर
दुनिया के रंज-ओ-ग़म का है व्यापार और भी
अह्द-ए-वफ़ा की बात वो क्यों हँस के कर गए
अल्लाह ! क्यों आता है एतबार और भी
दहलीज़-ए-हुस्न-ए-यार के ’आनन’ तुम्हीं नहीं
इस आस्तान-ए-यार पे हैं निसार और भी
-आनन्द.पाठक
09413395592
इज़हार-ए-मुहब्बत के हैं मुख़्तार और भी
इस दर्द-ए-मुख़्तसर के हैं गुफ़्तार और भी
ये दर्द मेरे यार ने सौगात में दिया
करता हूं इस में यार का दीदार और भी
कुछ तो मिलेगी ठण्ड यूँ दिल में रक़ीब को
होने दे यूँ ही अश्क़-ए-गुहरबार और भी
आयत रहीम-ओ-राम की वाज़िब तो है,मगर
दुनिया के रंज-ओ-ग़म का है व्यापार और भी
अह्द-ए-वफ़ा की बात वो क्यों हँस के कर गए
अल्लाह ! क्यों आता है एतबार और भी
दहलीज़-ए-हुस्न-ए-यार के ’आनन’ तुम्हीं नहीं
इस आस्तान-ए-यार पे हैं निसार और भी
-आनन्द.पाठक
09413395592
न आलिम न मुल्ला न उस्ताद ’आनन’ //
अदब से मुहब्बत अदब आशना हूँ//
सम्पर्क 8800927181
सदस्यता लें
संदेश (Atom)