1222---1222---1222---1222
मुफ़ाईलुन--मुफ़ाईलुन---मुफ़ाईलुन---मुफ़ाईलुन
बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम
-------------------------------
एक ग़ज़ल
मैं अपना ग़म सुनाता हूँ ,वो सुन कर मुस्कराते हैं
वो मेरी दास्तान-ए-ग़म को ही नाक़िस बताते हैं
बड़े मासूम नादाँ हैं ,खुदा कुछ अक़्ल दे उनको
किसी ने कह दिया "लव यू" ,उसी पर जाँ लुटाते हैं
सलीक़े से, मुहब्बत से,अदाओं से, नज़ाक़त से
मुफ़ाईलुन--मुफ़ाईलुन---मुफ़ाईलुन---मुफ़ाईलुन
बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम
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एक ग़ज़ल
मैं अपना ग़म सुनाता हूँ ,वो सुन कर मुस्कराते हैं
वो मेरी दास्तान-ए-ग़म को ही नाक़िस बताते हैं
बड़े मासूम नादाँ हैं ,खुदा कुछ अक़्ल दे उनको
किसी ने कह दिया "लव यू" ,उसी पर जाँ लुटाते हैं
सलीक़े से, मुहब्बत से,अदाओं से, नज़ाक़त से
वो मेरी ही ग़ज़ल अपनी बता, मुझको सुनाते हैं
तुम्हारे सामने हूँ मैं , हटा लो यह निक़ाब-ए-रुख
कि ऐसे प्यार के मौसम कहाँ हर रोज़ आते हैं
गिला करते भला किस से ,तुम्हारी बेनियाज़ी का
यहाँ पर कौन सुनता है ,सभी अपनी सुनाते हैं
तसव्वुर में हमेशा ही तेरी तस्वीर रहती है
हज़ारों रंग भरते हैं, बनाते हैं , सजाते हैं
दिल-ए-सदचाक पर जानम, सितम कुछ और कर लेते
समझ जाते वफ़ा क्या चीज है , कैसे निभाते हैं
मुहब्बत का दिया रख दर पे उनके आ गया ’आनन’
कि अब यह देखना है वो बचाते या बुझाते हैं
-आनन्द.पाठक--
p
शब्दार्थ
नाक़िस = बेकार ,व्यर्थ
दिल-ए-सद चाक = विदीर्ण हृदय
तुम्हारे सामने हूँ मैं , हटा लो यह निक़ाब-ए-रुख
कि ऐसे प्यार के मौसम कहाँ हर रोज़ आते हैं
गिला करते भला किस से ,तुम्हारी बेनियाज़ी का
यहाँ पर कौन सुनता है ,सभी अपनी सुनाते हैं
तसव्वुर में हमेशा ही तेरी तस्वीर रहती है
हज़ारों रंग भरते हैं, बनाते हैं , सजाते हैं
दिल-ए-सदचाक पर जानम, सितम कुछ और कर लेते
समझ जाते वफ़ा क्या चीज है , कैसे निभाते हैं
मुहब्बत का दिया रख दर पे उनके आ गया ’आनन’
कि अब यह देखना है वो बचाते या बुझाते हैं
-आनन्द.पाठक--
p
शब्दार्थ
नाक़िस = बेकार ,व्यर्थ
दिल-ए-सद चाक = विदीर्ण हृदय
इसी ग़ज़ल को मेरी आवाज़ में सुनें--