ग़ज़ल 202
2122--1212--22
बात यूँ ही निकल गई होगी
रुख की रंगत बदल गई होगी
वक़्त-ए-रुख़सत जो उसने देखा तो
हर तमन्ना निकल गई होगी
वक़्त क्या क्या नहीं सिखा देता
टूटे दिल से बहल गई होगी
दौर-ए-हाज़िर की रोशनी ऐसी
रोशनी से वह जल गई होगी
सर्द रिश्ते गले लगा लेना
बर्फ़ अबतक पिघल गई होगी
एक दूजे के मुन्तज़िर दोनों
उम्र उसकी भी ढल गई होगी
ज़िक्र ’आनन’ का आ गया होगा
चौंक कर फिर सँभल गई होगी
-आनन्द.पाठक-