सोमवार, 28 जनवरी 2019

ग़ज़ल 113 [34] : हाथ क्या उनसे मिलाते---

ग़ज़ल 113 [34]

बह्र-ए-रमल मुरब्ब: सालिम
फ़ाइलातुन---फ़ाइलातुन
2122----------2122
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हाथ जो उन से मिलाते
उँगलियाँ अपनी कटाते

दुश्मनी तो ठीक है ,पर
दोस्ती कुछ तो निभाते

जाग कर सोए हुए -सा
हम तुम्हें फिर क्या जगाते

झूठ को सच मानते हो
सच की बातें क्या बताते

आइने को  बद दुआएँ
ख़ुद मुखौटे  हो चढ़ाते

जब तुम्हें सुनना नहीं ,तो
हाल-ए-दिल क्या,हम सुनाते

दिल फ़क़ीराना है ’आनन’
मिलते रहना ,आते जाते


-आनन्द.पाठक-