ग़ज़ल 257[22E]
221---2121---1221--212
हर बार अपनी पीठ स्वयं थपथपा रहे
’कट्टर इमानदार हैं-खुद को बता रहे
दावे तमाम खोखले हैं ,जानते सभी
क्यों लोग बाग उनके छलावे में आ रहे?
झूठा था इन्क़लाब, कि सत्ता की भूख थी
कुर्सी मिली तो बाद अँगूठा दिखा रहे
उतरे हैं आसमान से सीधे ज़मीन पर
जो सामने दिखा उसे बौना बता रहे
वह बाँटता है ’रेवड़ी’ खुलकर चुनाव में
जो लोग मुफ़्तखोर हैं झाँसे मे आ रहे
वो माँगते सबूत हैं देते मगर न खुद
आरोप बिन सबूत के सब पर लगा रहे
वैसे बड़ी उमीद थी लोगों की ,आप से
अपना ज़मीर आप कहाँ बेच-खा रहे
’आनन’ वो तीसमार है इसमें तो शक नहीं
वो बार बार काठ की हंडी चढ़ा रहे ।
-आनन्द.पाठक-
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