ग़ज़ल 167 [38 A] : मुहब्बत में दीवानों को--
1222---1222---1222---1222-
जुनून-ए-इश्क़
में जो हैं, उन्हे करना नसीहत क्या ।
अलग
दुनिया में रहते हैं, जमाने
की इनायत क्या !
रखा
जिस हाल में मुझको, हमेशा ज़िंदगी तुमने
कोई
होता तो रो देता करूँ तुमसे शिकायत क्या।
जो
बन कर पेड़ जंगल के, थपेड़े
वक़्त के सहते
जुड़े
अपनी जड़ो से है तो फिर उनकी हिफ़ाज़त क्या !
जो
ज़िन्दा क़ौम होती है जमाने को बदलती है
कि
मुर्दा क़ौम कर सकती भला कोई बग़ावत क्या !
शहीदों
ने कटाए सर जुनूँ उनका था अपना ही
किसी
की मेह्र्बानी क्या, किसी
से लें इजाज़त क्या
किसी
के इश्क़ में डूबा सदा रहता है अपना दिल
निसार
अपना उसी पर दिल, इबादत क्या! जियारत क्या !
मुख़ालिफ़
हो हवा चाहे, नहीं बुझता दिया ’आनन’
इनायत
हो अगर उसकी. किसी की फिर इनायत क्या !
-आनन्द पाठक-
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