चन्द माहिए : 107 /17
:1:
प्रवचन तो अच्छा है
लेकिन मन भी क्या
उतना ही सच्चा है ?
लेकिन मन भी क्या
उतना ही सच्चा है ?
:2:
क्यों फेर रहा माला
साफ़ ज़रा कर लें
मन पर जो पड़ा जाला
:3:
मन साध नहीं ्पाया
चंदन टीका ही
केवल तुझको भाया
:4:
कंठी टीका माला
दंड कमंडल भी
मन फिर भी है काला
:5:
दुनिया को सिखाते हो
भगवाधारी बन
खुद कब अपनाते हो ?
-आनन्द पाठक-
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