-कविता 14
जीवन के हर एक मोड़ पर
कई अजनबी चेहरे उभरे
भोले भाले
कुछ दिलवाले
चार क़दम चल कर,
कुछ ठहरे
कुछ अन्तस में
गहरे उतरे ।
जब तक धूप रही जीवन में
साया बन कर साथ रहे
हाथों में उनके हाथ रहे
अन्धकार जब उतरा ग़म का
छोड़ गए, मुँह मोड़ गए कुछ
वो छाया थे।
फिर वही जीवन एकाकी
आगे अभी सफ़र है बाक़ी
लोग यहाँ पर मिलते रहते
जुड़ते और बिछड़ते रहते
क्या रोना है
क्यों रोना है
जीवन है तो यह होना है ।
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