ग़ज़ल 208
221--2122--// 221-2122
गुमराह हो गया तू, बातों में किसकी आ कर
दिल राहबर है तेरा, बस दिल की तू सुना कर
दिल राहबर है तेरा, बस दिल की तू सुना कर
किसको पुकारता है, पत्थर की बस्तियों में
खिड़की नहीं खुलेगी,तू लाख आसरा कर
मिलना ज़रा सँभल कर ,बदली हुई हवा है
हँस कर मिलेगा तुमसे ख़ंज़र नया छुपा कर
जब सामने खड़ा था भूखा ग़रीब कोई
फिर ढूँढता है किसको दैर-ओ-हरम में जाकर ?
मौसम चुनाव का है ,वादे तमाम वादे
लूटेंगे ’वोट’ तेरा ,सपने दिखा दिखा कर
मेरा जमीर मुझको देता नहीं इजाज़त
’सम्मान’ मैं कराऊँ ,महफ़िल सजा सजा कर
’आनन’ तेरी ये ग़ैरत अब तक नहीं मरी है
रखना इसे तू ज़िन्दा हर हाल में बचा कर
-आनन्द.पाठक-
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