रविवार, 31 जुलाई 2022

एक सूचना


[ आज 31-जुलाई ----

इस अकिंचन का जन्म दिन भी और इस अवसर पर मेरी 10-वीं पुस्तक - मौसम बदलेगा -- का प्र्काशन भी--एक सुखद संयोग ।


मित्रो !


आप लोगों को सूचित करते हुए  खुशी का अनुभव हो रहा है कि  आज मेरी  10वी किताब  - मौसम बदलेगा--[ गीत ग़ज़ल संग्रह ] प्रकाशित हो कर आ गई है ,

जिस में मेरी  कुछ ग़ज़लें ,कुछ गीत, कुछ कविताएँ और मुक्तक संकलित हैं ।


--उर्दू काव्य की मान्य विधाओं में, ग़ज़ल अपेक्षाकॄत सबसे प्रचलित और लोकप्रिय विधा है. जिसमें  

कम शब्दों में गहन  भावों की सम्प्रेषण क्षमता होती है और  हर दौर में प्रभावी रहती  है।

 ग़ज़ल में शायर के अनुभवों का निचोड़ होता है, तजुर्बात की ख़ुशबू  होती है, भोगी हुई पीड़ा की अभिव्यक्ति होती है।


ग़ज़ल का फ़लक व्यापक है। मीर से लेकर आज तक [और आगे भी] स्त्री-पुरुष के भौतिक प्रेम

[ इश्क़-ए-मज़ाजी ] से लेकर ईश्वरीय प्रेम [इश्क़-ए-हक़ीक़ी ] तक , ग़म-ए-जानाँ से लेकर ग़म-ए-दौराँ तक

 सब ग़ज़ल के विषय रहे है और दुष्यन्त कुमार जी तक आते आते सामाज़िक और राजनैतिक विषय भी ग़ज़ल के विषय हो गए।


ग़ज़ल एक बहती हुई नदी है जो न रुकी है, न झुकी है, न थकी है । हर काल में जीवन्त रही है और रहेगी।


मीर-ओ-ग़ालिब से चल कर है पहुँची यहाँ

कब रुकी या  झुकी कब थकी है  ग़ज़ल ?  


--- बदलाव और परिवर्तन प्रकृति का नियम भी  और जीवन का दर्शन भी। मौसम एक सा नहीं रहता , समय भी एक सा नही रहता । पतझड़ है तो बहार भी। उम्र भर किसी का इन्तिज़ार भी,।

 कोई  मिलन के लिए बेकरार भी। जीवन में सुख- दु:ख,आशा-निराशा , विरह-मिलन का होना, नई आशाओं के साथ सुबह का होना ,शाम का ढलना, 

एक सामान्य क्रम है,  एक शाश्वत प्रक्रिया है। और अन्त में  विचार करना कि जीवन में क्या खोया क्या पाया । दिन भर की भाग-दौड़ का क्या हासिल रहा 

और यही सब हिसाब-किताब करते करते एक दिन आदमी सो जाता है। जीवन का क्रम है यही शाश्वत नियम है । 

बहुत सी बातों पर हमारा-आप का अधिकार नहीं होता। सब नियति का खेल है। कोई एक अदॄश्य शक्ति है जो हम सब कॊ  संचालित करती है।

यही सब मेरी भी ग़ज़लों ,गीतों और कविताओं के विषय रहे हैं।


इसी संग्र्ह से कुछ पंक्तियां  आप लोगों के के अवलोकनार्थ लगा रहा हूँ –शायद पसन्द आए।

एक गीत है 

सुख का मौसम, दुख का मौसम, आँधी-पानी का हो मौसम

मौसम का आना-जाना है , मौसम है मौसम बदलेगा ।-   

आज के इस भौतिक युग में हर आदमी व्यर्थ अनैतिक धन के पीछे भाग रहा है । उसे धन ,भौतिक सुख सुविधाएँ , झूठी शान का दिखावा. झूठा सम्मान ही सच लगता है। 

इतराता है । 

रुख हवा का जिधर, पीठ कर दी उधर

राग दरबारियों-सा हैं  गाने लगे

 कभी कभी तो स्वार्थ-पूर्ति हेतु ज़मीर बेचने से भी गुरेज नहीं करता। ज़मीर बड़ी चीज़ होती है,  नायाब होती है ।

 ज़मीर ज़िन्दा है तो आप ज़िन्दा हैं। ज़मीर जब मरता है तो एक संवेदन शील व्यथित मन पुकार उठता है 

’आनन’ ज़मीर1 तेरा ,अब तक नहीं मरा है

रखना इसे तू ज़िन्दा ,गर्दिश में भी  बचा कर

ऐसी  ही बहुत सी ग़ज़लें ग़म-ए-दौरां  पर कही गईं है ,कुछ ग़म-ए-जानां पर कहीं गईं है । कुछ अश’आर बानगी के तौर पर लगा रहा हूँ ।

आप भी लुत्फ़-अन्दोज़ हों:-

निगाहों में उनकी लिखा जो, पढ़ा तो

झुका सर, समझ कर मुहब्बत की आय

मुहब्बत की ताक़त यह कि 

जहाँ सर झुक गया ’आनन’ वहीं काबा, वहीं काशी ,

वो खुद ही आएँगे चलकर बड़ी ताक़त मुहब्बत में ।

सांसारिक सुख की ताक़त यह कि

मसजिद से निकलते ही, फिर रिन्द हुआ ’आनन’,

इस दिल को वही भाया, अब और वज़ाहत क्या!

[ वज़ाहत = स्पष्टीकरण ]

और भी ऐसी बहुत सी ग़ज़ले ,गीत संकलित है इस किताब  में ।


यह किताब  [ और मेरी अन्य किताबें भी ] निम्न पते से प्राप्त की जा सकती हैं ।


संजय जी

अयन प्रकाशन

जे-19/39 राजापुरी. उत्तम नगर , नई दिल्ली-59

Email : ayanprakashan@gmail.com

Website : www.ayanprakashan.com

मोबाइल नं0/व्हाट्स अप नं0----92113 12372 पर भी सम्पर्क किया जा सकता है।


यह संग्रह , अमेज़ान पर भी शीघ्र उपलब्ध हो जाएगी जिसका लिंक बाद में साझा कर दूँगा ।


  इस संग्रह से कुछ ग़ज़लें ,गीत ,कविता, मुक्तक समय समय पर इस मंच पर लगाता रहा हूँ और आप लोगों का आशीर्वाद प्राप्त होता रहा है । आशा करता हूँ कि अन्य संग्रहों की भाँति यह संग्र्ह भी आप लोगों को अवश्य पसन्द आएगा।

सादर 

 

 -आनन्द.पाठक-

8800927181

 

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