चन्द माहिया: क़िस्त 41
:1:
सदक़ात भुला मेरा
एक गुनह तुम को
बस याद रहा मेरा
:2:
इक चेहरा क्या भाया
हर चेहरे में वो
मख़्सूस नज़र आया
;3:
हो जाता हूँ पागल
जब जब काँधे से
ढलता तेरा आँचल
:4:
उल्फ़त की यही ख़ूबी
पार लगा वो ही
कश्ती जिसकी डूबी
:5:
क्या और तवाफ़1 करूँ
इतना ही समझा
मन पहले साफ़ करूँ
-आनन्द.पाठक-
[सं 15-06-18]
:1:
सदक़ात भुला मेरा
एक गुनह तुम को
बस याद रहा मेरा
:2:
इक चेहरा क्या भाया
हर चेहरे में वो
मख़्सूस नज़र आया
;3:
हो जाता हूँ पागल
जब जब काँधे से
ढलता तेरा आँचल
:4:
उल्फ़त की यही ख़ूबी
पार लगा वो ही
कश्ती जिसकी डूबी
:5:
क्या और तवाफ़1 करूँ
इतना ही समझा
मन पहले साफ़ करूँ
-आनन्द.पाठक-
[सं 15-06-18]
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