कुछ मुक्तक
:1:
हो भले तीरगी रास्ता पुरखतर
दूर आती न मंज़िल कहीं हो नज़र
हम चिरागों का क्या है जहाँ भी रखो
हम वहीं से करें रोशनी का सफ़र
:1:
हो भले तीरगी रास्ता पुरखतर
दूर आती न मंज़िल कहीं हो नज़र
हम चिरागों का क्या है जहाँ भी रखो
हम वहीं से करें रोशनी का सफ़र
:2;
लफ़्ज़ होंठो पे आ लड़खड़ाने लगे
जिसको कहने में हमको ज़माने लगे
नये ज़माने की कैसी हवा बह चली
दो मिनट में मोहब्ब्त जताने लगे
:3:
ज़माने से पूछो न बातें हमारी
गमो-दर्दे-दिल की वो रातें हमारी
अगर पूछना है तो पूछो हमी से
ए ’आनन’! क्यूं नम है ये आँखें तुम्हारी?
जिसको कहने में हमको ज़माने लगे
नये ज़माने की कैसी हवा बह चली
दो मिनट में मोहब्ब्त जताने लगे
:3:
ज़माने से पूछो न बातें हमारी
गमो-दर्दे-दिल की वो रातें हमारी
अगर पूछना है तो पूछो हमी से
ए ’आनन’! क्यूं नम है ये आँखें तुम्हारी?
:4;
अच्छे भलों की सोच भी होने लगी बंजर
हर शख़्स घूमता है लिए हाथ में खंज़र
वैसे तुम्हारे शहर का हमको नहीं पता
लेकिन हमारे शहर में है ख़ौफ़ का मंज़र
--आनन्द पाठक-
--आनन्द पाठक-
2 टिप्पणियां:
लफ़्ज़ होंठो पे आ लड़खड़ाने लगे
जिसको कहने में हमको ज़माने लगे
behatareen rachana. zazbat sunder
teenon muktak shaandaar , teesra vishesh bhaya. badhaai.
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