:01:
मत काटो शाख़-ए-शजर
लौटेंगे थक कर
इक शाम परिन्दे घर
:02:
मैं मस्त कलन्दर हूँ
बाहर से क़तरा
भीतर से समन्दर हूँ
:03:
ये किसकी राहगुज़र ?
झुक जाता है सर
सजदे में यहाँ आकर
:04:
सौ ख़्वाब ख़यालों में
जब तक है पर्दा
उलझा हूँ सवालों में
:05:
दुनिया ने ठुकराया
और कहाँ जाता
मयखाने चला आया
-आनन्द.पाठक-
मत काटो शाख़-ए-शजर
लौटेंगे थक कर
इक शाम परिन्दे घर
:02:
मैं मस्त कलन्दर हूँ
बाहर से क़तरा
भीतर से समन्दर हूँ
:03:
ये किसकी राहगुज़र ?
झुक जाता है सर
सजदे में यहाँ आकर
:04:
सौ ख़्वाब ख़यालों में
जब तक है पर्दा
उलझा हूँ सवालों में
:05:
दुनिया ने ठुकराया
और कहाँ जाता
मयखाने चला आया
-आनन्द.पाठक-
[सं 21-10-20]
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