रविवार, 8 फ़रवरी 2015

चन्द माहिया : क़िस्त 15



:1:
ये रात ये, तनहाई
सोने कब देती
वो तेरी अँगड़ाई

;2:

जो तूने कहा ,माना
तेरी निगाहों में 
फिर भी हूँ अनजाना

:3:

कुछ दर्द-ए-ज़माना है
और ग़म-ए-जानाँ
जीने का बहाना है

:4:

कूचे जो गये तेरे
सजदे से पहले 
याद आए गुनह मेरे

:5:

इक वो भी ज़माना था
्जब जब तुम रूठी
मुझको ही मनाना था

-आनन्द.पाठक

[सं 10-06-18]


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