मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

विविध 04 :फ़र्द शे’र

विविध 04: फ़र्द शे’र

[ एक समन्दर , मेरे अन्दर ] से
           
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11212---11212---11212---11212
 वो चिराग़ लेके चला तो है ,मगर आँधियों का ख़ौफ़ भी
 मैं सलामती की दुआ करूँ ,उसे हासिल-ए-महताब हो     

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1222---1222---1222---1222
 तुम्हारा रास्ता तुमको मुबारक हज़रत-ए-नासेह
 अरे ! मैं रिन्द हूँ पीर-ए-मुगां है ढूँढता  मुझको
  
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11212---11212---11212---11212
मैं दरख़्त हूँ ,वो लगा गया ,मैं बड़ा हुआ ,वो चला गया
वो बसीर था जो भी ख़्वाब थे मेरी शाख़ शाख़ में जज़्ब है
                    
(एक समंदर मेरे अंदर ) --प्रकाशित
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