चन्द माहिया : क़िस्त 45
:1:
सब ग़म के भँवर में हैं
कौन किसे पूछे
सब अपने सफ़र में हैं
;2:
अपना ही भला देखा
कब देखी मैने
अपनी लक्षमन रेखा
:3:
माया की नगरी में
बाँधोंगे कब तक
इस धूप को गठरी में
:4:
होठों पे तराने हैं
आँखों में किसके
बोलो .अफ़साने हैं
5
जो चाहे ,दे देना
चाहत क्या मेरी
आँखों से समझ लेना
:1:
सब ग़म के भँवर में हैं
कौन किसे पूछे
सब अपने सफ़र में हैं
;2:
अपना ही भला देखा
कब देखी मैने
अपनी लक्षमन रेखा
:3:
माया की नगरी में
बाँधोंगे कब तक
इस धूप को गठरी में
:4:
होठों पे तराने हैं
आँखों में किसके
बोलो .अफ़साने हैं
5
जो चाहे ,दे देना
चाहत क्या मेरी
आँखों से समझ लेना
-आनन्द.पाठक-
[सं 15-06-18]
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें