चन्द माहिया : क़िस्त 48
:1:
क्यों दुख से घबराए
धीरज रख मनवा
मौसम है, बदल जाए
:2:
तलवारों पर भारी
एक कलम मेरी
और इसकी खुद्दारी
:3:
सुख-दुख आए जाए
सुख ही कहाँ ठहरा
जो दुख ही ठहर पाए
:4:
तेरी नीली आँखें
ख़्वाबों को मेरे
देती रहती साँसें
:5:
इक नन्हीं सी चिड़िया
खेल रही जैसे
मेरे आँगन गुड़िया
-आनन्द.पाठक-
:1:
क्यों दुख से घबराए
धीरज रख मनवा
मौसम है, बदल जाए
:2:
तलवारों पर भारी
एक कलम मेरी
और इसकी खुद्दारी
:3:
सुख-दुख आए जाए
सुख ही कहाँ ठहरा
जो दुख ही ठहर पाए
:4:
तेरी नीली आँखें
ख़्वाबों को मेरे
देती रहती साँसें
:5:
इक नन्हीं सी चिड़िया
खेल रही जैसे
मेरे आँगन गुड़िया
1 टिप्पणी:
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