चन्द माहिया :क़िस्त 53
:1:
क़िस्मत की बातें हैं
कुछ को ग़म ही ग़म
कुछ को सौग़ातें हैं
:2:
कब किसने माना है
आज नहीं तो कल
सब छोड़ के जाना है
:3:
कब तक भागूँ मन से
देख रहा कोई
छुप छुप कर चिलमन से
:4:
कब दुख ही दुख रहता
वक़्त किसी को भी
यकसा तो नहीं रखता
5
लगनी होती ,लगती
आग मुहब्बत की
ताउम्र नही बुझती
-आनन्द.पाठक-
:1:
क़िस्मत की बातें हैं
कुछ को ग़म ही ग़म
कुछ को सौग़ातें हैं
:2:
कब किसने माना है
आज नहीं तो कल
सब छोड़ के जाना है
:3:
कब तक भागूँ मन से
देख रहा कोई
छुप छुप कर चिलमन से
:4:
कब दुख ही दुख रहता
वक़्त किसी को भी
यकसा तो नहीं रखता
5
लगनी होती ,लगती
आग मुहब्बत की
ताउम्र नही बुझती
-आनन्द.पाठक-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें