चन्द माहिया :क़िस्त 56
:1:
ये कैसी माया है
तन तो है अपना
मन तुझ में समाया है
:2:
इस फ़ानी हस्ती पर
:1:
ये कैसी माया है
तन तो है अपना
मन तुझ में समाया है
:2:
इस फ़ानी हस्ती पर
दाँव लगाए ज्यों
कागज़ की कश्ती पर
:3:
ये कैसा रिश्ता है
ओझल है फिर भी
दिल रमता रहता है
:4:
बेचैन बहुत है दिल
कब तक मैं तड़पूं
अब तो बस आकर मिल
:5:
अन्दर की सब बातें
लाख छुपाओ तुम
कह देती हैं आँखें
-आनन्द.पाठक-
:3:
ये कैसा रिश्ता है
ओझल है फिर भी
दिल रमता रहता है
:4:
बेचैन बहुत है दिल
कब तक मैं तड़पूं
अब तो बस आकर मिल
:5:
अन्दर की सब बातें
लाख छुपाओ तुम
कह देती हैं आँखें
-आनन्द.पाठक-
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