शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2025

अनुभूतिया 184/71

 अनुभूतिया 184/71

:1:
माली अगर सँवारे गुलशन
प्रेम भाव से मनोयोग से ।
ख़ुशबू फ़ैले दूर दूर तक
डाली डाली के सुयोग से।


:2:
बदले कितने रूप शब्द ने
तत्सम से लेकर तदभव तक
कितने क्रम से गुज़रा करतीं
जड़ी बूटियाँ ज्यों आसव तक ॥

मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025

ग़ज़ल 448 [22-जी] : तुम्हारे झूठ का हम ऎतबार क्या करते--

 ग़ज़ल 448 [22-जी] : तुम्हारे झूठ का हम ऎतबार क्या करते--

1212---1122---1212---22

तुम्हारे झूठ का हम ऐतबार क्या करते

न बोलना है तुम्हे सच, इन्तज़ार क्या करते।


न सुननी बात हमारी, न दर्द ही सुनना ,

गुहार आप से हम बार बार क्या करते।


ज़ुबान दे के भी तुमको मुकर ही जाना है

तुम्ही बता दो कि तुमसे क़रार क्या करते।


वो साज़िशों में ही दिन रात मुब्तिला रहता,

बना के अपना उसे राज़दार क्या करते ।


हज़ार बार बताए उन्हें न वो समझे ,

न उनको ख़ुद पे रहा इख्तियार क्या करते।


लगा के बैठ गए दाग़ खुद ही दामन पर

यही खयाल चुभा बार बार, क्या करते ।


मक़ाम सब का यहाँ एक ही है जब 'आनन'

दिल.ए.ग़रीब को हम सोगवार क्या करते ।

-आनन्द पाठक ’आनन’




रविवार, 19 अक्टूबर 2025

ग़ज़ल 447 [21-जी] : बाग़ मेरा न यूँ लुटा होता

 ग़ज़ल 447[21-जी] : बाग़ मेरा यूँ न लुटा होता

2122---1212---22

बाग़ मेरा न यूँ लुटा होता

बाग़बाँ जो जगा रहा होता ।


हाल ग़ैरों से ही सुना तुमने ,

हाल-ए-दिल मुझसे कुछ सुना होता ।


सर उठा कर जो हम नहीं चलते

सर हमारा कटा नहीं होता ।


राह तेरी अलग रही होती

अपनी शर्तों पे जो जिया होता।


द्वार दिल का जो तुम खुला रखते

लौट कर वह नहीं गया होता ।


वक़्त भरता नहीं अगर मेरा

जख़्म-ए-दिल अब तलक हरा होता।



हुस्न और इश्क़ ग़र न हो ’आनन’

ज़िंदगी का जवाज़ क्या होता ?


-आनन्द.पाठक ’आनन’-

जवाज़ = औचित्य