मफ़ाईलुन---मफ़ाईलुन---मफ़ाईलुन---मफ़ाईलुन
1222----------1222---------1222------1222
बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम
-------------------------------
एक ग़ज़ल
जुनून-ए-इश्क़ में हमने न जाने क्या कहा होगा !
थे इतने बेख़ुदी में गुम कि हम को क्या पता होगा
मैं अपने इज़्तिराब-ए-दिल से रहता पूछता अकसर
कि जितना चाहता हूँ ,क्या वो उतना चाहता होगा
हमें मालूम है नाकामी-ए-दिल, हसरत-ए-उल्फ़त
हमें तो आख़िरी दम तक वफ़ा से वास्ता होगा
सभी तो रास्ते जाते तुम्हारी ही गली हो कर
वहाँ से लौट आने का न कोई रास्ता होगा
ख़याल-ओ-ख़्वाब में जिस के, कटी ये ज़िन्दगी अपनी
मैं उसको जानता हूँ, क्या मुझे वो जानता होगा ?
जो उसको ढूँढने निकला ,तो खुद ही खो गया"आनन"
जिसे ख़ुद में नहीं पाया , वो बाहर ला-पता होगा
-आनन्द.पाठक
इज़्तिराब-ए-दिल = दिल की बेचैनी/बेचैन दिल
[सं 19-05-18]
1222----------1222---------1222------1222
बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम
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एक ग़ज़ल
जुनून-ए-इश्क़ में हमने न जाने क्या कहा होगा !
थे इतने बेख़ुदी में गुम कि हम को क्या पता होगा
मैं अपने इज़्तिराब-ए-दिल से रहता पूछता अकसर
कि जितना चाहता हूँ ,क्या वो उतना चाहता होगा
हमें मालूम है नाकामी-ए-दिल, हसरत-ए-उल्फ़त
हमें तो आख़िरी दम तक वफ़ा से वास्ता होगा
सभी तो रास्ते जाते तुम्हारी ही गली हो कर
वहाँ से लौट आने का न कोई रास्ता होगा
ख़याल-ओ-ख़्वाब में जिस के, कटी ये ज़िन्दगी अपनी
मैं उसको जानता हूँ, क्या मुझे वो जानता होगा ?
जो उसको ढूँढने निकला ,तो खुद ही खो गया"आनन"
जिसे ख़ुद में नहीं पाया , वो बाहर ला-पता होगा
-आनन्द.पाठक
इज़्तिराब-ए-दिल = दिल की बेचैनी/बेचैन दिल
[सं 19-05-18]
3 टिप्पणियां:
जुनून-ए-इश्क़ में हमने न जाने क्या "किया" होगा!
बहुत खूब - लाजवाब ग़ज़ल
"ख़याल-ओ-ख़्वाब में जिस के, कटी है ज़िन्दगी अपनी
मैं उसको जानता हूँ, क्या वो मुझ को जानता होगा ?"
... क्या बात है!!!!
आ० कौशिक जी/सत्यार्थी जी
ग़ज़ल की सराहना के लिए धन्यवाद
सादर
आनन्द.पाठक
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