एक ग़ज़ल 28[11 A]
बह्र-ए-रमल मुसद्दस सालिम
2122---2122---2122
झूठ की बातों को उसने सत्य माना
सत्य कहने का नही है अब ज़माना
गालियाँ ही आजतक उसको मिली है
जब भी पर्दाफ़ाश करने को है ठाना
लोग बच बच कर निकलने लग गए
जब कभी वह बात करता आरिफ़ाना
वह अजायब घर की जैसे चीज कोई
नेक इन्सां का हुआ जैसे ठिकाना
मैं किसी को क्या बताता जख़्म अपना
है किसे फ़ुरसत किसी को क्या दिखाना
जब अदालत का हुआ आदिल ही बहरा
क्या करे फ़रियाद कोई, क्या सुनाना
सूलियों पर है टँगा हर बार ’आनन’
जब मुहब्बत का सुनाता है तराना ।
-आनन्द.पाठक-
सं-1
6 टिप्पणियां:
गालियाँ ही आज तक पाई
जब भी पर्दाफ़ाश करता है
यही सच है .. बहुत खूब
bahut khoob...
bilkul mere jaisa haal hai uska bhi..
jo mai kar guzra wo bhi wahi kamal karta hai...
shayad zindagi uljhi rahe ta umr uski bhi mere jaise ..
magar tum kab samjhoge wo bhi yahi sawal karta hai..
सूलियों पर क्यों टँगा ’आनन’?
आदमी से प्यार करता है
साधु-साधु
साधु-साधु
अलगरज़ कुछ तो सबब होगा
कौन किस पर यूँ ही मरता है?
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल दाद तो कुबूल करनी ही होगी ...
सार्थक रचना बधाई ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
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