ग़ज़ल
221--2121--1221--212
ऐसी भी हो ख़बर कहीं अख़बार में छपा
कल इक ’शरीफ़’ आदमी था रात में दिखा
लथपथ लहूलुहान न हो जाए वो कहीं
आदम की नस्ल आख़िरी है या ख़ुदा! बचा
वो क़ातिलों की बस्तियों में आ गया कहां !
उस पर हँसेंगे लोग सब ठेंगे दिखा दिखा
बेमौत मर न जाए वो मेरी तरह कहीं
इस शहर में उसूल की गठरी उठा उठा
जो हैं रसूख़दार वो कब क़ैद में रहे !
मजलूम जो ग़रीब है वो कब हुआ रिहा !
अहल-ए-नज़र में वो यहां पागल क़रार है
’कलियुग’ से पूछता फिरे ’सतयुग’ का जो पता
जब से ख़रीद बेंच की दुनिया ये हो गई
’आनन’ कहो कि कब तलक ईमान है बचा
-आनन्द.पाठक
3 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी लगाई जा रही है!
सूचनार्थ!
आ0 शास्त्री जी
रचना को ’चर्चा मंच ’में शामिल करने के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद
सादर
आनन्द.पाठक
09413395592
आ0 शास्त्री जी
रचना को ’चर्चा मंच ’में शामिल करने के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद
सादर
आनन्द.पाठक
09413395592
एक टिप्पणी भेजें