बुधवार, 5 दिसंबर 2012

एक ग़ज़ल 036[24-B] : इज़हार-ए-मुहब्बत....

 ग़ज़ल 036 [24-B]   : इज़हार-ए-मुहब्बत...

221--2121---1221--212


इज़हार-ए-इश्क़ के अभी इसरार और भी

इस दर्द-ए-मुख़्तसर के हैं गुफ़्तार और भी



यह दर्द मेरे यार ने सौगात में दिया

करता हूं इस में यार का दीदार और भी



कुछ तो मिलेगी ठण्ड यूँ दिल में रक़ीब को

होने दे यूँ ही अश्क़-ए-गुहरबार और भी



आयत रहीम-ओ-राम की वाज़िब तो है,मगर

दुनिया के रंज-ओ-ग़म का है व्यापार और भी



अह्द-ए-वफ़ा की बात वो जब हँस के कर गए

लगता है झूठ उनका असरदार और भी ।



दहलीज़-ए-हुस्न-ए-यार के ’आनन’ तुम्हीं नहीं

इस आस्तान-ए-यार के दिलदार और भी
                                


-आनन्द.पाठक

09413395592

2 टिप्‍पणियां:

शारदा अरोरा ने कहा…

gazal bahut achchi lagi ...kisi manje hue shayar ki kahi gaee baat si lagti hai ...thode mushkil shabdon ke maayne bhi neeche likh diya keejiye...taki samjhne me aasani ho..aur gyaan bhi badhe..

Rajesh Kumari ने कहा…

बहुत शानदार ग़ज़ल लिखी है पाठक जी सभी शेर जबरदस्त दाद कबूल कीजिये