:1:
दर्द के गीत गाता रहा
मन ही मन मुस्कराता रहा
आँसुओं ने बयां कर दिया
वरना मैं तो छुपाता रहा
:2:
दिल खिलौना समझ ,तोड़ कर
चल दिए तुम मुझे छोड़ कर
मैं खड़ा हूँ वहीं आज तक
ज़िन्दगी के उसी मोड़ पर
:3:
हाल पूछो न मेरी हस्ती का
सर पे इलजाम बुत परस्ती का
उसको ढूँढा ,नहीं मिला मुझको
क्या गिला करते अपनी पस्ती का
:4:/01
लोग बैसाखियों के सहारे चले
जो चले भी किनारे किनारे चले
सरपरस्ती न हासिल हुई थी जिसे
वो समन्दर में कश्ती उतारे चले
xx xx xx
-आनन्द.पाठक--
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें