माहिया : क़िस्त 24
:1:
ये इश्क़, वफ़ा,क़समें
:1:
ये इश्क़, वफ़ा,क़समें
सुनने में आसाँ
मुश्किल है बहुत रस्में
:2:
दिल क्या चाहे जानो
मैं न बुरा मानू
तुम भी न बुरा मानो
:3:
सच कितनी हसीं हो तुम
चाँद मैं क्या देखूं
ख़ुद माहजबीं हो तुम
:4:
जाड़े की धूप सी तुम
फूल पे ज्यों शबनम
लगती हो रूपसी ,तुम !
:5:
भींगा न मेरा आंचल
लौट गए घर से
बरसे ही बिना बादल
-आनन्द पाठक
[सं12-06-18]
:2:
दिल क्या चाहे जानो
मैं न बुरा मानू
तुम भी न बुरा मानो
:3:
सच कितनी हसीं हो तुम
चाँद मैं क्या देखूं
ख़ुद माहजबीं हो तुम
:4:
जाड़े की धूप सी तुम
फूल पे ज्यों शबनम
लगती हो रूपसी ,तुम !
:5:
भींगा न मेरा आंचल
लौट गए घर से
बरसे ही बिना बादल
-आनन्द पाठक
[सं12-06-18]
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