चन्द माहिया : क़िस्त 23
:1:
रिश्तों की तिजारत में
ढूँढ रहे हो क्या
इस दौर-ए-रवायत में
:2:
क्या वस्ल की रातें थीं
और न था कोई
हम तुम थे, बातें थीं
:3:
:3:
कुर्सी से रहा चिपका
कैसे मैं जानू
कैसे मैं जानू
ये ख़ून बहा किसका
:4:
अच्छा न बुरा जाना
दिल ने कहा जितना
उतना ही सही माना
:5:
वो आग लगाते हैं
फ़र्ज़ मगर अपना
हम आग बुझाते हैं
-आनन्द.पाठक-
[सं 12-06-18]
:4:
अच्छा न बुरा जाना
दिल ने कहा जितना
उतना ही सही माना
:5:
वो आग लगाते हैं
फ़र्ज़ मगर अपना
हम आग बुझाते हैं
-आनन्द.पाठक-
[सं 12-06-18]
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