शनिवार, 26 मई 2018

चन्द माहिया : क़िस्त 44


          :1:
खुद तूने बनाया है
माया का पिंजरा
ख़ुद क़ैद में आया है

:2:
किस बात का है रोना
छोड़ के जाना है
फिर क्या पाना, खोना ?

          :3:
जब चाँद नहीं उतरा
खिड़की मे,तो फिर
किसका चेहरा उभरा ?

          :4:
जब तुमने पुकारा है
कौन यहां ठहरा ?
लौटा न दुबारा है

          :5:
वो प्यार भरी बातें
अच्छी लगती थी
छुप छुप के मुलाकातें

-आनन्द.पाठक- 
[सं 15-06-18]

3 टिप्‍पणियां:

'एकलव्य' ने कहा…

आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २८ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

Onkar ने कहा…

सुन्दर रचना

मन की वीणा ने कहा…

बहुत खूब