शनिवार, 20 अक्तूबर 2018

चन्द माहिया : क़िस्त 54

चन्द माहिया : क़िस्त 54

:1:
शिकवा न शिकायत है
जुल्म-ओ-सितम तेरा
क्या ये भी रवायत है

:2:
यह ज़ोर-ए- सितम तेरा
कैसा है जानम !
निकला ही न दम मेरा

  :3:
जो होना था सो हुआ
अहल-ए-दुनिया से
छोड़ो भी गिला शिकवा



:4:
इतना ही बस माना
राह-ए-मुहब्बत से
घर तक तेरे जाना

:5:
यादें कुछ सावन की
तुम जो नहीं  आए
बस एक व्यथा मन की



-आनन्द पाठक--

कोई टिप्पणी नहीं: