चन्द माहिया : क़िस्त 54
:1:
शिकवा न शिकायत है
जुल्म-ओ-सितम तेरा
क्या ये भी रवायत है
:2:
कैसा ये सितम तेरा
सीख रही है क्या ?
निकला ही न दम मेरा
:3:
छोड़ो भी गिला शिकवा
अहल-ए-दुनिया से
जो होना था सो हुआ
:4:
इतना ही बस माना
राह-ए-मुहब्बत से
घर तक तेरे जाना
:5:
यादें कुछ सावन की
तुम जो नहीं आए
बस एक व्यथा मन की
-आनन्द पाठक--
:1:
शिकवा न शिकायत है
जुल्म-ओ-सितम तेरा
क्या ये भी रवायत है
:2:
कैसा ये सितम तेरा
सीख रही है क्या ?
निकला ही न दम मेरा
:3:
छोड़ो भी गिला शिकवा
अहल-ए-दुनिया से
जो होना था सो हुआ
:4:
इतना ही बस माना
राह-ए-मुहब्बत से
घर तक तेरे जाना
:5:
यादें कुछ सावन की
तुम जो नहीं आए
बस एक व्यथा मन की
-आनन्द पाठक--
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