सोमवार, 22 मई 2023

ग़ज़ल 327 [ 03F] : ज़िंदगी में रही एक कमी उम्र भर

 ग़ज़ल 327[03F]

212---212---212---212

जिंदगी में रही इक कमी उम्र भर

इन लबों पर रही तिशनगी उम्र भर ।


तुम जो आते तो दिल होता रोशन मेरा

तुम न आए रही तीरगी  उम्र भर 


जानता हूँ मगर पूछ सकता नहीं

ज़िंदगी क्यों मुझे तुम छ्ली उम्र भर ?


ये नज़ाकत, लताफ़त ये क़ातिल अदा

किसकी क़ायम यहाँ कब रही उम्र भर !


आप की बात पर था भरोसा मुझे

राह देखा किए आप की उम्र भर


हो न लुत्फ़-ओ-इनायत भले आप की

दिल करेगा मगर बंदगी उम्र भर


सबको अपना समझते हो ’आनन’ यहाँ

कौन होता किसी का कहाँ उम्र भर ?


-आनन्द.पाठक-

सं 22-06-24


 

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