ग़ज़ल 326 [02F]
जब दिल मे कभी उनका,इक अक्स उतर आया ,
दुनिया न मुझे भायी, दिल और निखर आया ।
ऐसा भी हुआ अकसर, सजदे में झुकाया सर,
ख्वाबों मे कभी उनका चेहरा जो नजर आया ।
कैसी वो कहानी थी सीने मे छुपा रख्खी
तुमने जो सुनाई तो इक दर्द उभर आया ।
दो बूँद छलक आए नम आँख हुई उनकी
चर्चा में कहीं मेरा जब जख्म-ए-जिगर आया ।
अंजाम से क्या डरना क्यों लौट के हम आते ,
खतरों से भरे रस्ते दौरान-ए-सफर आया ।
क्या क्या न सहे हमने, दम तोड़ दिए सपने
टूटे हुए सपनों से जीने का हुनर आया ।
मालूम नही तुझको, क्या रस्म-ए-वफा, उलफत
क्या सोच के तू 'आनन', कूचे मे इधर आया ।
--आनन्द पाठक-
सं 22-06-24
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