सोमवार, 3 अप्रैल 2023

गज़ल 320(85E) : गर्म आने लगी है हवाएँ इधर

गजल 320(85)
212---212---212---212

गर्म आने  लगीं है हवाएँ इधर
'कुछ जली बस्तियाँ' कल की होगी खबर

चल पड़े लीडराँ रोटियाँ सेंकने
सब को आने लगी अब है कुर्सी नजर

आग की यह लपट कब हैं पहचानतीं
यह है 'जुम्मन' का घर या 'सुदामा' का घर

लोग गुमराह करते रहेंगे तुम्हे
उनकी चालों से रहता है क्यों बेखबर

अपने मन का अँधेरा मिटाया नहीं
चाहते हो मगर तुम नई इक सहर

प्यार की बात क्यों लोग करते नहीं
 चार दिन का है जब जिंदगी का सफर

 उनके हाथों के पत्थर पिघल जाएँगे
अपनी ग़ज़लों में 'आनन' मुहब्बत तो भर

- आनन्द पाठक-



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