गजल 323(88E)
निगाहों ने निगाहों से कहा क्या था, खुदा जाने
कभी जब सामना होता लगे हैं अब वो शरमाने
मिले दो पल को राहो में झलक क्या थी क़यामत थी
ये दिल मक्रूज है उनका वो ख्वाबों मे लगे आने
नही मालूम है जिनको, मुहब्बत चीज क्या होती
वही तफसील से हमको लगे हैं आज समझाने
इनायत आप की गर हो भले कागज की कश्ती हो
वो दर्या पार कर लेगी कोई माने नही माने
ये जादू है पहेली है कि उलफत है भरम कोई
कभी लगते हैं वो अपने कभी लगते है बेगाने
बड़ी मुशकिल हुआ करती, मैं जाऊँ तो किधर जाऊँ
तुम्हारे घर की राहों मे हैं मसजिद और मयखाने
अगर दिल साफ हो अपना तो पोथी और पतरा क्या
कि सीधी बात भी 'आनन' लगे हो और उलझाने
-आनन्द पाठक-
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