ग़ज़ल 321[86इ]
1222---1222----122
तुम्हारे चाहने से क्या हुआ है
जो होना था वही होकर रहा है
जो होना था वही होकर रहा है
बहुत रोका कि ये छलके न आँसू
हमारे रोकने से कब रुका है
भँवर में हो कि तूफाँ में सफीना
हमेशा मौज़ से लड़ता रहा है
हवाएँ साजिशें करने लगीं अब
चमन शादाब मुरझाने लगा है
चमन शादाब मुरझाने लगा है
हमारे हाथ में ताक़त क़लम की
तुम्हारे हाथ में खंज़र नया है
दरीचे खोल कर देखा न तुमने
तुम्हे दिखती उधर कैसी फ़ज़ा है
उजाले क्यों उन्हें चुभते हैं ’आनन’
अँधेरों से कोई क्या वास्ता है ?
-आनन्द.पाठक-
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