सोमवार, 1 अप्रैल 2024

क्षणिका 07

 क्षणिका 07

जब बचपन मे
रंग बिरंगी शोख तितलियाँ
बैठा करती थी फूलों पर
भागा करता था मै
पीछे पीछे 
जब भी उनको छूना चाहा
उड़ जाती थीं इतरा कर
इठला कर, मुझे थका कर ।

समय कहाँ रुकता जीवन में
ही तितलियाँ बैठ गईं अब
अपने अपने फूलों पर
पास से गुज़रूँ, पूछे हँस कर
"अब घुटनों का दर्द तुम्हारा, कैसा कविवर" ?


-आनन्द पाठक-

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