सोमवार, 30 दिसंबर 2024

कोना-02

 [चन्द मुन्तख़िब मानूस अश’आर]


कोना 02

    1

कि गवाँ दिया मैने होश भी, मुझे चैन आ न सका कभी

तेरी याद यूँ ही जवाँ रही, तुझे दिल भुला न  सका कभी ।    - नामालूम  

2

न देखा था जो बज्म-ए-दुश्मन में देखा

मुहब्बत तमाशे दिखाती है क्या क्या ।                

 -बेख़ुद देहलवी

3

इब्तिदा-ए-इश्क़ है रोता है क्या 
आगे आगे देखिए होता  है क्या ।             -मीर तक़ी मीर

4

बग़ैर पूछे जो अपनी सफ़ाई देता है

नहीं भी हो तो मुजरिम दिखाई देता है।            - शौक़-

5

मेहरबां हो के बुला लो मुझे  चाहो जिस वक़्त

मैं गया वक़्त नहीं हूं कि आ भी न सकूँ ।        -दाग़ देहलवी

6

अल्लाह दस्त-ए-नाज़ की नाज़ुक़ सी उँगलियाँ

उस पर भी गुलाब-ए-इत्र की ख़ुशबू का बोझ है ।   

 - डा0 कैलाश गुरुस्वामी

7

हम बावफ़ा थे इसलिए नज़र से गिर गए

शायद उन्हे तलाश किसी बेवफ़ा की थी ।      -नामालूम

8

कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए

यहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं  शहर के लिए ।   

     -दुष्यन्त कुमार


-आनन्द.पाठक [ संकलन कर्ता]





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