[चन्द मुन्तख़िब मानूस अश’आर]
कोना 02
1
कि गवाँ दिया मैने होश भी, मुझे चैन आ न सका कभी
तेरी याद यूँ ही जवाँ रही, तुझे दिल भुला न सका कभी । - नामालूम
2
न देखा था जो बज्म-ए-दुश्मन में देखा
मुहब्बत तमाशे दिखाती है क्या क्या ।
-बेख़ुद देहलवी
3
इब्तिदा-ए-इश्क़ है रोता है क्या
आगे आगे देखिए होता है क्या । -मीर तक़ी मीर
4
बग़ैर पूछे जो अपनी सफ़ाई देता है
नहीं भी हो तो मुजरिम दिखाई देता है। - शौक़-
5
मेहरबां हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
मैं गया वक़्त नहीं हूं कि आ भी न सकूँ । -दाग़ देहलवी
6
अल्लाह दस्त-ए-नाज़ की नाज़ुक़ सी उँगलियाँ
उस पर भी गुलाब-ए-इत्र की ख़ुशबू का बोझ है ।
- डा0 कैलाश गुरुस्वामी
7
हम बावफ़ा थे इसलिए नज़र से गिर गए
शायद उन्हे तलाश किसी बेवफ़ा की थी । -नामालूम
8
कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए
यहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए ।
-दुष्यन्त कुमार
-आनन्द.पाठक [ संकलन कर्ता]
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