अनुभूतियाँ 163/50
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कभी प्रेम का ज्वार उठा है
कभी दर्द के बादल छाए ।
जीवन भर मैने जीवन को
मिलन-विरह के गीत सुनाए ।
650
चाहे जितना अँधियारा हो
एक रोशनी मन के अन्दर
सतत जला करती रहती है
राह दिखाती रहती अकसर
651
तीर कमान लिए हाथों में
काल, व्याध बन बैठा छुप कर
इक दिन तो जद में आना है
कब तक रह पाओगे बच कर।
652
साँस साँस पर कर्ज उसी का
वही साँस में घुला हुआ है ।
मन रहता आभारी उसका
सतगुण से जो धुला हुआ है ।
-आनन्द.पाठक-
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