अनुभूतियां 166/53
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नदी किनारे गाता कोई
गीत विरह का किसे सुनाता
चला गया जो कब आता है
जान रहा फिर किसे बुलाता ।
662
सबकी अपनी अपनी दुनिया
सब अपने में ही खोए हैं
काटेंगे कल फ़सल वही सब
अबतक जिसने जो बोए हैं
663
जलता है जब गुलशन मेरा
*कोई हँसता है मन ही मन*
जितना समझाता हूँ दिल को
उतनी बढ़ती जाती उलझन
जलता है जब गुलशन मेरा
*कोई हँसता है मन ही मन*
जितना समझाता हूँ दिल को
उतनी बढ़ती जाती उलझन
664
मत पूछो हमराही मेरे
कैसे थे या क्या थे वो दिन
राजमहल थी कुटिया मेरी
आज खंडहर है उसके बिन
-आनन्द पाठक-
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