अनुभूतियां 164/51
653
काल-खंड का पहिया चलता
सुख दुख का क्रम बारम्बारा
कभी उच्च्चतम, कभी निम्नतम
इसी बीच में जीवन सारा ।
654
सरदी हो चाहे गरमी हो
आजीवन चलना पड़ता है
चलते रहना ही जीवन है
रुकना जीवन की जड़ता है ।
655
धरती के अन्तस की पीड़ा
बादल क्या समझे क्या जाने
कहाँ बरसना, नहीं बरसना
बादल यह सब कब पहचाने ।
656
रात अँधेरी नीरव निर्जन
और राह उस पर दुर्गम है
ज्योति-पुंज हो अगर ग्यान का
सफ़र सुहाना क़दम क़दम है ।
-आनन्द.पाठक-
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