ग़ज़ल 428 [02G]
221---2122-// 221-2122
मफ़ऊलु--्फ़ाइलातुन// मफ़ऊलु--फ़ाइलातुन
बह्र-ए-मुज़ारे’ अख़रब
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वह पीठ अपनी ख़ुद ही बस थपथपा रहा है
लिख कर क़सीदा अपना, ख़ुद गुनगुना रहा है।
कर के जुगाड़ तिकड़म वह चढ़ गया कहाँ तक,
कितना हुनर है उसमे सबको बता रहा है ।
जिस बात को ज़माना सौ बार कह चुका है ,
क्या बात है नई जो, मुझको सुना रहा है ।
वैसे ज़मीर उसका तो मर चुका है कब का ,
उसको भी यह पता है फिर भी जगा रहा है।
वह झूठ ओढ़ता है, वह झूठ ही बिछाता ,
कट्टर इमान वाला, तगमा दिखा रहा है ।
आवाज़ दे रहा है ,चेहरा बदल बदल कर ,
अब कौन सुन रहा है, किसको बुला रहा है ।
वादे तमाम वादे कर के नहीं निभाना ,
उम्मीद क्यों तू ’आनन’ उससे लगा रहा है ।
-आनन्द.पाठक-
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