रविवार, 19 सितंबर 2010

एक ग़ज़ल 20[29 A] : संदिग्ध आचरण है ...


मफ़ऊलु---फ़ाइलातुन---// मफ़ऊलु----फ़ाइलातुन
221-           2122  -------// 221--------------2122
मज़ारिअ’ मुसम्मन अख़रब
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एक ग़ज़ल 20[29 A] : संदिग्ध आचरण है ......ऒके

संदिग्ध आचरण है , खादी का आवरण है
’रावण’ कहाँ मरा है ,’सीता’ का अपहरण है

जो झूठ के हैं पोषक ,दरबार में प्रतिष्ठित
जो सत्य के व्रती हैं ,वनवास में मरण है

शोषित,दलित व पीड़ित,मन्दिर कभी व मस्ज़िद
नव राजनीति का यह, संक्षिप्त संस्करण है

ज़िन्दा कभी बिका तो ,कौड़ी में दो बिकेगा
अनुदान लाश पर है ,भुगतान का हरण है

सरकार मूक दर्शक ,शासन हुआ अपाहिज
सब तालियाँ बजाते भेंड़ों सा अनुसरण है

’रोटी’ की खोजना था ,’अणु-बम्ब’ खोजते हैं
इक्कीसवीं सदी में दुनिया का आचरण है

हर शाम थक मरा हूँ ,हर सुबह चल पड़ा हूँ
मेरी जिजीविषा ही , आशा की इक किरण है

-आनन्द पाठक-
[सं 20-05-18]

शनिवार, 11 सितंबर 2010

एक ग़ज़ल 19 [08 A] : वह उसूलों पर चला है ....

ग़ज़ल 19 [08 A]--ओके

फ़ाइलातुन --फ़ाइलातुन--फ़ाइलुन
2122---2122----212
बह्र-ए-रमल मुसद्द्स महज़ूफ़
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एक ग़ज़ल : वह उसूलों पर चला है......

वह उसूलों पर चला है उम्र भर
साँस ले ले कर मरा है उम्र भर

जुर्म उसका ये कि सच है बोलता
कटघरे में जो खड़ा है उम्र भर

पात केले की तरह संवेदना
वो बबूलों पर टंगा है उम्र भर

मुख्य धारा से अलग धारा रही
अपनी दुनिया में जिया है उम्र भर

वो भरोसा कर सदा मरता रहा
अपने लोगों ने छला है उम्र भर

घाव दिल के जो दिखा पाता अगर
स्वयं से कितना लड़ा है उम्र भर

राग दरबारी न’आनन’ गा सका
इस लिए सूली चढ़ा है उम्र भर

-आनन्द पाठक-
[सं 20-05-18]