बह्र-ए-रमल मुसद्द्स महज़ूफ़
फ़ाइलातुन---फ़ाइलातुन-फ़ाइलुन
2122--2122---212
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ग़ज़ल 24[45 A] : जब से उनकी आत्मा है मर गई...... ओके
फ़ाइलातुन---फ़ाइलातुन-फ़ाइलुन
2122--2122---212
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ग़ज़ल 24[45 A] : जब से उनकी आत्मा है मर गई...... ओके
जब से उनकी आत्मा है मर गई
उनके घर उनकी तिजोरी भर गई
चन्द रोटी से जुड़ी मजबूरियाँ
रात वह ’कोठी" गई, अक्सर गई
जब गई थाने में लिखवाने ’रपट’
फिर कभी "छमिया" न अपने घर गई
फूल ,कलियाँ, तितलियाँ सहमी सभी
बदनज़र माली की जब उन पर गई
लाश पर वो रोटियाँ सेंका किया
आदमी की आदमीयत मर गई
हादसे में मरने वाले मर गए
देख-सुन सरकार अपने घर गई
अब
तो ”आनन’ लोग अपनी ऐंठ मे
सोच
में उनकी ’अना’ है भर गई।
-आनन्द पाठक--
[सं 02-06-18]
[सं 02-06-18]
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