ग़ज़ल 45 [ 03 A] ओके
2122---2122--2122--212
2122---2122--2122--212
फिर जली कुछ बस्तियाँ ,ये काम रोजाना हुआ
फिर वहू होगी बहस बस, जाना-पहचाना हुआ
हम समझते थे वो दिल के पाक दामन साफ़ हैं
गुप्त समझौते किए थे , हाथ जल जाना हुआ
पीढ़ियाँ-दर-पीढ़ियाँ हम झेलते हैं मुफ़लिसी
आज तक रोटी का मसला हल न हो पाना हुआ
इस जुनूँ से, नफ़रतों से क्या हुआ हासिल तुम्हें ?
बेगुनाहों की लहू का सिर्फ़ बह जाना हुआ
और भी तो हैं तरीके बात कहने के लिए
क्या धमाकों में कभी कुछ बात सुन पाना हुआ ?
खिड़कियाँ खोलो तो समझो फ़र्क-ए-जुल्मत रोशनी
इन अँधेरों में वगरना जी के मर जाना हुआ
फिर वही एलान-ए-राहत और वादा नौकरी
झुनझुने ’आनन’ के हाथों दे के बहलाना हुआ
-आनन्द पाठक-
09413395592
फिर वहू होगी बहस बस, जाना-पहचाना हुआ
हम समझते थे वो दिल के पाक दामन साफ़ हैं
गुप्त समझौते किए थे , हाथ जल जाना हुआ
पीढ़ियाँ-दर-पीढ़ियाँ हम झेलते हैं मुफ़लिसी
आज तक रोटी का मसला हल न हो पाना हुआ
इस जुनूँ से, नफ़रतों से क्या हुआ हासिल तुम्हें ?
बेगुनाहों की लहू का सिर्फ़ बह जाना हुआ
और भी तो हैं तरीके बात कहने के लिए
क्या धमाकों में कभी कुछ बात सुन पाना हुआ ?
खिड़कियाँ खोलो तो समझो फ़र्क-ए-जुल्मत रोशनी
इन अँधेरों में वगरना जी के मर जाना हुआ
फिर वही एलान-ए-राहत और वादा नौकरी
झुनझुने ’आनन’ के हाथों दे के बहलाना हुआ
-आनन्द पाठक-
09413395592
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