सोमवार, 22 जुलाई 2013

एक ग़ज़ल 46 : रोशनी से कब तलक....


एक ग़ज़ल 46: रोशनी से कब तलक....

2122--2122---2122


रोशनी से कब तलक डरते रहोगे ?

’तालिबानी’ इल्म में पलते रहोगे



यूँ किसी के हाथ का बन कर खिलौना

कब तलक उन्माद में लड़ते रहोगे ?



तुम ज़मीर-ए-ख़ास को मरने न देना

गाहे-गाहे सच की तो सुनते रहोगे



प्यार के दो-चार पल जी लो,वगरना

नफ़रतों की आग में जलते रहोगे



जानता हूँ ’रोटियों’ के नाम लेकर

तुम सियासी चाल ही चलते रहोगे



मैं सदाकत के लिए लड़ता रहूँगा

और तुम ! दम झूट का भरते रहोगे



जब कभी फ़ुर्सत मिले,’आनन’ से मिलना

मिल जो लोगे ,बारहां मिलते रहोगे



-आनन्द.पाठक
09413395592


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