2122--1212--22
आप हुस्न-ओ-शबाब रखते हैं
इश्क़ मेरे भी ताब रखते
हैं
जान लेकर चलें हथेली पे
हौसले इन्क़लाब रखते
हैं
उनके दिल का हमें नहीं
मालूम
हम दिल-ए-इज़्तिराब रखते
हैं
जब भी उनके ख़याल में
डूबे
सामने माहताब रखते
हैं
आप को जब इसे उठाना
है
आप फिर क्यूँ हिज़ाब रखते हैं
?
मौसिम-ए-गुल कभी तो
आयेगा
हम भी आँखों में
ख़्वाब रखते हैं
अब तो बस,बच गया जमीर
’आनन’
आज भी आब-ओ-ताब रखते
हैं
-आनन्द.पाठक
1 टिप्पणी:
वाह वाह, जबरदस्त
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