शुक्रवार, 20 जून 2014

चन्द माहिया : क़िस्त 02

माहिए : क़िस्त 02 ओके

:1:

किस बात पे हो रूठे ,
किस ने कहा तुम से
सब रिश्ते हैं झूठे ?

:2:

जाना था,नहीं आते
आ ही गये हो तो
कुछ देर ठहर जाते

:3:

जब तुमने नहीं माना
सच को सच मेरा
दुनिया ने कब जाना

:4:

आँखों के अन्दर है
तब तक है आँसू
निकले तो समन्दर है

:5: 

आँसू में छुपा है ग़म
कहने को क़तरा
दरिया से नहीं है कम

-आनन्द.पाठक

[सं 21-10-20]

शुक्रवार, 13 जून 2014

चन्द माहिया : क़िस्त 01

माहिया : क़िस्त 01 ओके
 : 1 : 

ये हुस्न का जादू है
सर तो सजदे में
पर दिल बेक़ाबू  है


    :2:

आँखों में उतरना है
टोक दिया दिल ने
कुछ और सँवरना है
  
     :3:

हम राह निहारेंगे
आओ न आओ तुम
हम फिर भी पुकारेंगे

     :4:

ख़्वाबों में बुला कर तुम
छुप जाती हो क्यों
यूँ प्यास बढ़ा कर तुम ?

     :5:


इक देश हमें जाना
कैसा होगा,वो !
जो देश है अनजाना


-आनन्द.पाठक-

सं 21-10-20

इन्ही माहियों को मेरी आवाज़ में सुने

सोमवार, 9 जून 2014

गीत 54 : तुम चाहे जितने पहरेदार....



तुम चाहे जितने पहरेदार बिठा दो
दो नयन मिले तो भाव एक रहते हैं

दो दिल ने कब माना है जग का बन्धन
नव सपनों का करता  रहता आलिंगन
जब युगल कल्पना मूर्त रूप  लेती हैं
मन ऐसे महका करते  ,जैसे चन्दन

जब उच्छवासों में युगल प्राण घुल जाते
तब मन के अन्तर्भाव  एक रहते हैं

यह प्रणय स्वयं में संस्कृति है ,इक दर्शन
यह चीज़ नहीं कि करते रहें  प्रदर्शन
अनुभूति और एहसास तले पलता है
यह ’तन’ का नहीं है.’मन’ का है आकर्षण

जब मर्यादा की ’लक्ष्मण रेखा’ आती
दो कदम ठिठक ,ठहराव एक रहते हैं

उड़ते बादल पर चित्र बनाते कल के
जब बिखर गये तो फिर क्यूँ आंसू ढुलके
जब भी यथार्थ की दुनिया से टकराए
जो रंग भरे थे ,उतर गए सब धुल के

नि:शब्द और बेबस आँखें कहती हैं
दो हृदय टूटते ,घाव एक रहते हैं

तुम चाहे जितने पहरेदार बिठा दो,दो नयन मिले तो भाव एक रहते हैं

-आनन्द.पाठक-