:1:
इक अक्स उतर आया
दिल के शीशे में
फिर कौन नज़र आया
:2:
ता उम्र रहा चलता
ख्वाब मिलन का था
आँखों में रहा पलता
:3:
तुम से न कभी सुलझें
अच्छी लगती हैं
अच्छी लगती हैं
बिखरी बिखरी ज़ुल्फ़ें
:4:
गो दुनिया फ़ानी है
लेकिन जैसी भी
लगती तो सुहानी है
:5:
वो मज़हब में उलझे
मजहब के आलिम
इन्सां को नहीं समझे
-आनन्द.पाठक
[सं0 09-06-18]
:4:
गो दुनिया फ़ानी है
लेकिन जैसी भी
लगती तो सुहानी है
:5:
वो मज़हब में उलझे
मजहब के आलिम
इन्सां को नहीं समझे
-आनन्द.पाठक
[सं0 09-06-18]
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